इतना सुंदर समय ना खोओ...


ज़िंदगी भी कैसे-कैसे मोड़ लेती है... माहौल कब, कैसे बदल जाए, पता ही नहीं चलता... हमारे घर सब सुबह जल्दी उठते हैं... मम्मा तो तहज्जुद की नमाज़ के लिए रात में दो बजे ही उठ जाती हैं और फिर नमाज़ के बाद क़ुरआन की सूरतें पढ़ती है... और इस तरह फ़ज्र की नमाज़ पढ़कर ही जानमाज़ से उठती हैं...
लेकिन यहां दिल्ली का माहौल अलग है... रात के दो बजे बच्चे छत पर खेल रहे होते हैं...लोग दस-ग्यारह बजे सोकर उठते हैं... बारह बजे के आसपास नाश्ता होता है... दोपहर का खाना  तीन बजे के बाद होता है... और इसी तरह रात का खाना ग्यारह बजे के बाद होता है... यानी लोग आधा दिन सोकर गुज़ारते हैं... सुबह की फ़िज़ा कैसी होती है, ये लोग जानते ही नहीं... लेकिन हमारी आज भी वही आदत है सुबह जल्दी उठने की...
अपना घर बहुत याद आता है... और बचपन के दिन भी... गर्मियों में सुबह सवा छह बजे स्कूल शुरू होता था... जाड़ो में पौने आठ बजे... इसलिए बचपन से सुबह जल्दी उठने की आदत है... सुबह-सुबह परिंदों के लिए दाना डालते थे, और कूंडे का पानी भी बदलते थे... तबीयत ख़राब होने पर कभी सुबह उठने में देर हो जाती, तो चिड़ियां चीं-चीं करती हुई कमरे तक आ जातीं... कितनी प्यारा लगता था, सुबह-सुबह चहकती चिड़ियों को देखकर, उनकी चहचहाहट सुनकर... वाक़ई सुबह बेहद ख़ुशनुमा हो जाया करती थी...
सुबह जल्दी उठना बहुत अच्छा लगता है... सुबह की ताज़ा हवा, चिड़ियों की चहचहाहट से जहां दिन की शुरुआत अच्छी होती है, वहीं जल्दी उठने से सेहत भी अच्छी रहती है...
उत्तर प्रदेश में बच्चों के कोर्स की किताब में सोहनलाल द्विवेदी की कविता हुआ करती थी (शायद अब भी हो), जिसे ख़ूब पढ़ा करते थे-
उठो लाल अब आंखें खोलो
पानी लाई हूं मुंह धो लो
बीती रात कमल-दल फूले
उनके ऊपर भौंरे झूले
चिड़ियां चहक उठीं पेड़ों पर
बहने लगी हवा अति सुंदर
नभ में न्यारी लाली छाई 
धरती ने प्यारी छवि पाई 
भोर हुआ सूरज उग आया
जल में पड़ी सुनहरी छाया
नन्‍हीं नन्‍हीं किरणें आईं
फूल खिले कलियां मुस्काईं
इतना सुंदर समय ना खोओ
मेरे प्‍यारे अब मत सोओ...

काश ! बचपन वापस लौटकर आ सकता...

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1 Response to "इतना सुंदर समय ना खोओ..."

  1. शोभा says:
    20 नवंबर 2013 को 3:38 pm बजे

    वाह फिरदौसजी ये कविता तो हमने भी पढ़ी है यानि मध्य प्रदेश में भी चलती थी ! ये ही नहीं अपनी बेटी को भी यही कविता सुना कर उठाती थी. एक और कविता
    हुआ सबेरा निकलो घर से
    चुन्नू मुन्नू चलो मदरसे
    पढ़ना लिखना अच्छा काम
    जग में होता ऊँचा नाम

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