मेरे घर आई एक नन्ही परी...


आज हमारी परी यानी फ़लक (भतीजी) की पहली सालगिरह है... पिछले साल आज ही के दिन वह बहार बनकर हमारे घर आई थी... कितनी तैयारियां की गई थीं उसके लिए... कपड़े, दूधदानी, बेबी सोप, बेबी पाउडर, झूला, खिलौने और न जाने क्या-क्या ख़रीदा गया था... और इस सबसे बढ़कर उसके लिए एक प्यारा-सा नाम ढूंढना था... वाक़ई बड़ी ज़िम्मेदारी का काम था अपनी परी के लिए एक प्यारा-सा नाम सोचना... कहते हैं कि नाम का इंसान की ज़िंदगी पर बहुत असर पड़ता है... घर में सब यही चाहते थे कि नाम हम ही बताएं... आख़िरकार हमने पांच-सात नाम अपनी मम्मा को बता दिए,जिनमें से उन्हें फ़लक नाम पसंद आया...
बहरहाल... हम फ़लक को परी कहकर बुलाते हैं... उसके प्यार के नाम बहुत सारे हैं... सबके अपने-अपने...
सबसे ख़ास बात हमारी परी को गीत-संगीत बहुत पसंद है... आज दोपहर संतों की एक टोली गीत गाते हुए गली से गुज़री, तो वह बाहर जाने की ज़िद करने लगी... मम्मा ने उसके हाथों कुछ पैसे संतों को दिलाए... संतों ने उसे ढेर सारी दुआएं दीं और उसके माथे पर एक नन्हा-सा तिलक भी लगा दिया...
परी गाने बहुत ध्यान से सुनती है... ख़ासकर साहिर लुधियानवी साहब का यह गीत, जिसके बोल हमें अब और भी मीठे लगने लगे हैं...

मेरे घर आई एक नन्ही परी, एक नन्ही परी
चांदनी के हसीन रथ पे सवार
मेरे घर आई...

उसकी बातों में शहद जैसी मिठास
उसकी सांसों में इतर की महकास
होंठ जैसे के भीगे-भीगे गुलाब
गाल जैसे के बहके-बहके अनार
मेरे घर आई...

उसके आने से मेरे आंगन में
खिल उठे फूल, गुनगुनायी बहार
देखकर उसको जी नहीं भरता
चाहे देखूं उसे हज़ारों बार
मेरे घर आई...

मैंने पूछा उसे के कौन है तू
हंसके बोली के मैं हूं तेरा प्यार
मैं तेरे दिल में थी हमेशा से
घर में आई हूं आज पहली बार
मेरे घर आई...

सच ! बच्चे होते ही हैं इतने प्यारे कि हमारी ज़िंदगी बन जाते हैं... उनकी एक मुस्कराहट पर दोंनों जहां की खु़शियां लुटा देने को जी चाहता है... परी हमेशा खु़श रहे... आमीन...

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