आज मज़दूर दिवस है...

आज मज़दूर दिवस है... हर साल मज़दूर दिवस मनाते वक़्त आंखों में उम्मीद की एक नन्ही किरन झिलमिलाती है कि एक दिन तो वो सुबह ज़रूर आएगी, जब मेहनतकशों को उनके हिस्से की ज़मीन और आसमान मिलेगा... यही उम्मीद तो है, जिसके सहारे मेहनतकश ज़िन्दगी की तमाम जद्दो-जहद का मुक़ाबला करते हुए अपनी तमाम उम्र बिता देते हैं... बहरहाल, आप सभी मेहनतकशों को आज के दिन की दिली मुबारकबाद...

आज साहिर लुधियानवी का यह गीत याद आ रहा है-
वो सुबह कभी तो आएगी, वो सुबह कभी तो आएगी
इन काली सदियों के सर से, जब रात का आंचल ढलकेगा
जब दुख के बादल पिघलेंगे, जब सुख का सूरज चमकेगा
जब अम्बर झूम के नाचेगा, जब धरती नग़मे गाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी...

जिस सुबह की ख़ातिर जग जग से, हम सब मर कर जीते हैं
जिस सुबह की अमृत बूंद में, हम ज़हर के प्याले पीते हैं
इन भूखी प्यासी रूहों पर, एक दिन तो करम फ़रमाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी...

माना कि अभी तेरे मेरे अरमानों की क़ीमत कुछ भी नहीं
मिट्टी का भी है कुछ मोल मगर, इंसानों की क़ीमत कुछ भी नहीं
इंसानों की इज़्ज़त जब झूठे सिक्कों में ना तोली जाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी...

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