ज़िन्दगी ख़ाक न थी, ख़ाक उड़ाते गुज़री

कुछ चीज़ें दिल को छू जाती हैं... जैसे पाकिस्तान के ’हम’ टीवी चैनल पर प्रसारित हुए नाटक ’ज़िन्दगी गुलज़ार है’ का ये टाइटल सॊन्ग...

ज़िन्दगी ख़ाक न थी, ख़ाक उड़ाते गुज़री
तुझसे क्या कहते, तेरे पास जो आते गुज़री

दिन जो गुज़रा तो, किसी याद की रौ में गुज़रा
शाम आई तो कोई ख़्वाब दिखाते गुज़री

अच्छे वक़्तों की तमन्ना में रही उम्र-ए-रवां
वक़्त ऐसा था के बस नाज़ उठाते गुज़री

ज़िन्दगी जिसके मुक़द्दर में हों ख़ुशियां तेरी
उसको आता है निभाना सो निभाते गुज़री

ज़िन्दगी नाम उधर है किसी सरशारी का
और उधर दूर से एक आस लगाते गुज़री

रात क्या आई के तन्हाई की सरगोशी में
हू का आलम था, मगर सुनते-सुनते गुज़री

बारहा चौंक सी जाती है मुसाफ़त दिल की
किसकी आवाज़ थी ये, किसको बुलाते गुज़री

मशहूर शायर नसीर तुराबी साहब के इस कलाम को हदीक़ा किआनी ने अपनी आवाज़ दी है... ’हम’ टीवी चैनल पर ’ज़िन्दगी गुलज़ार है’ 30 नवंबर 2012 को शुरू हुआ था, जो 24 मई 2013 तक प्रसारित हुआ... फ़िलहाल यह नाटक ’ज़िन्दगी’ चैनल पर पर प्रसारित हो रहा है...

  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • Twitter
  • RSS

0 Response to "ज़िन्दगी ख़ाक न थी, ख़ाक उड़ाते गुज़री"

एक टिप्पणी भेजें